umeshshuklaairo
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जीवन का हर्षित पल यूँ ही
फेंक दिया है मानव ने
मानवता का क्रंदन भी अब
पड़ा हुआ है क्रंदन में
श्वास -प्रश्वास की प्रक्रिया में
उलझे हुए स्पंदित ह्रदय ने
जीवन की लय को मोड़ा है
विकृत हो रहे जीवन की
छवि जब देखूं जीवन में
आहत हो तब हाथ ह्रदय पर
आ जाता है क्षण भर में
क्या देखूं और क्यूँ देखूं
इस विद्रूप समाज के दर्पण में
मेरा ही आभासीपन
अट्टहास करता प्रतिबिम्बन में
आदम्बर्ता छिपी रही नहीं
यत्न करूँ मैं कितने ही
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