Menu
blogid : 11232 postid : 38

विवेकानंद …….एक मजबूत ब्रांड

umeshshuklaairo
umeshshuklaairo
  • 231 Posts
  • 54 Comments

पिछ्ले दो दिनों से मै लखनऊ स्थित स्वामी विवेकानंद अस्पताल में किसी कार्यवश आ- जा रहा हूँ ..आज जो कुछ मैंने महसूस किया वह अगर आपसे नहीं बताया तो मैं अपने ही साथ अन्याय करूँगा ……….स्वामी विवेकानंद एक ऐसा नाम जिसे परिचय की आवश्यकता नहीं ……..एक नाम से बड़ा एक वजूद जो अपने जीवन काल में अभावग्रस्त ही रहा ….वह जिसके पिता और बहन ने जीवन के अंतिम पल किस तरह से बिताये सबको मालुम है।
अपने गुरु रामकृष्ण को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने हेतु उनके नाम से रामकृष्ण मिशन चलाया ………लखनऊ के इस अस्पताल को दो दिन करीब से देखने के बाद यह भ्रम टूट गया की गरीबों के लिए इस प्रकार की संस्थाएं भी नहीं उपलब्ध हैं। अस्पताल की प्रस्तर पट्टिकाओं को देखने से लगता है की गरीबों के निःशुल्क इलाज़ हेतु लोगों ने अपनी जमीन दान दी अलग से कोष स्थापित किया ……किन्तु पता नहीं कौन लाभार्थी है?
वो विवेकानंद जो नरेन्द्र का चोला सिर्फ इसलिए त्याग देता है की समाज के कुछ कष्ट कम हो सकें और वो सफल भी रहते हैं। आज उसी विवेकानंद को एक मजबूत ब्रांड बनाकर बेचा जा रहा है।
जी हाँ हो सकता है आप इससे सहमत ना हों किन्तु सत्य यही है विवेकानंद नाम की सेलिंग में अंधे लोगों ने उनके जीवन दर्शन के मूलभूत सिद्धांतों को तिलांजलि देते हुए मात्र धन अर्जन को अपना लक्ष्य बना लिया है।किसी गरीब व्यक्ति की स्थिति का निर्धारण “स्वामीजी ” करते हैं ….मतलब ये की अमूमन तो किसी गंभीर मर्ज़ का गरीब व्यक्ति के लिए इलाज है ही नहीं और अगर है भी तो पहले अपनी स्थिति स्वामीजी से लिखवा कर लाये ……..गरीब की गरीबी का ये कैसा मजाक है ……..पूरे अस्पताल को देखने के बाद सिर्फ आपको व्यवसायीकरण ही दिखेगा , वह अध्यात्म तो है ही नहीं जिसकी परिकल्पना विवेकानंद और श्री रामकृष्ण जी ने की थी ……..आज शनिवार के दिन मुख्य हाल में लगी विवेकानंद की प्रतिमा की सफाई की जाती है ….जिस तरीके से सफाई की जाती है उसको देख कर लगता है की अभी हम 1950 के दशक में जी रहे हैं बांस की बल्लियों के सहारे चढ़ कर किसी प्रकार उस प्रतिमा की सफाई दो व्यक्ति करते हैं ……..कमल है 50 लाख की प्रतिमा को साफ़ करने के लिए एक अदद कुछ हज़ार रुपये का प्लेटफ़ॉर्म लिया जा सकता था किन्तु लगता है की जीवन बचाने की गुहार करने वाले विवेकानंद के अनुयायी जीवन दांव पर लगाने में माहिर हैं।
एक ब्रांड के तौर पर इस्तेमाल होने वाले विवेकानंद की आत्मा को कितना कष्ट होगा ये सहज ही समझा जा सकता है ………आज समझ में आता है की क्यों विवेकानंद ने अपने उद्बोधनों में सत्चरित्र को वरीयता दी ………संभवतः युगद्रष्टा को आभास था की उसको किस तरह से भरे चौराहे नीलम कर दिया जायेगा उसके अपनों के ही द्वारा।
बेचो बेचो जम कर बेचो तुमको तो थाती मिली ही है इस ब्रांड को पेटेंट भी करा लेना …….और फिर भी कुछ बचे तो जाकर अपने एसी कमरे में बैठ कर योजना बनाना की गरीबों के नाम का पैसा किस तरह से खाया और पचाया जा सकता है।

जय हिंद
उमेश शुक्ला
अखिल भारतीय अधिकार संगठन
airo.org.in

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply