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अब गाँव बहुत याद आते हैं

umeshshuklaairo
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अब गाँव बहुत याद आते हैं
वो छप्पर की छत पर फूस का ढेर
वो मिटटी के हाथी ,मिटटी के शेर
वो खेतों की मिटटी औ मिटटी में फसलें
वो फसलों का उगना औ बढ़ने पे कटना
उन्ही को उठा कर बखारी में धरना
वो गन्ने का लूचा औ राब का धेल
वो माई का गुहारन औ लोगों का ओरहन
बहुत याद आते हैं बचपन के खेल
वो चील्होर पाती औ तड़ी पड़ी का खेल
वो ट्यूबवेल नहाना औ घर में बहाना
बहाने बनाकर खुदी मुस्कुराना
बहुत याद आते हैं बचपन के खेल
वो बागों में जमती ताशो की गड्डी
आमों की बटाई में टूटी जो हड्डी
वो लू की न चिंता न बीमारी का डर
वो महुए की सोंधी महक भी जब उठती
दिल कहे अब काहे रुकें एक रत्ती
वो जामुन की कच्ची डालों पे चढ़ना
वो भाई का हरकना औ बहना का रोना
वो टूटी हुयी डाल आती है याद
वो प्यारा सा गाँव ,वो गाँव का मेल
बहुत याद आते हैं बचपन के खेल

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