umeshshuklaairo
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फोड़ तिमिर के गर्भ को
सूरज का अंकुर फूटा
प्रकाश रश्मि के पल्लव
ने
अंधकार को जमकर लूटा
किन्तु अरुण को क्या मालूम
दिवस परे उस लोक अँधेरा
तुम इस तरफ तो मै उस तरफ
फिर मनवा तूने क्यूँ सोचा
तू ही है बस एक अनूठा
रख धैर्य अपने सूर्य के
उगने तक
तेरा भी आलोक जागेगा
बस धैर्य हाँ धैर्य
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