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कालजयी हमारे रिवाज़

umeshshuklaairo
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भारतीय संस्कृति कितनी कालजयी है यह तो सर्व विदित एवं प्रमाणिक सत्य है …इसी काल जयिता से मेरा साक्षात्कार अचानक ही एक वैवाहिक रीति में हुआ
रीति यह है ही विवाह की प्रक्रिया के दौरान वर और वधु एक दूसरे की कलाई पर हल्दी बंधा हुआ एक धागा बंधते हैं जिसको वर के घर आने के पश्चात् अगले दिन स्नान से पूर्व दोनों खोलते हैं ….आप कहेंगे इसमें खास क्या है और कालजयिता कहाँ है ?
वो धागा जिसमे एक नहीं कई गांठें लगी हुयी हैं अपने एक हाथ का प्रयोग करके खोलनी होती हैं …
मुझे लगा मानव जीवन भी ऐसा ही है … हमारे मनीषियों ने संभवतः इस प्रथा के माध्यम से बताया होगा की जीवन में समस्या की कई गांठें मिलेंगी एक हाथ के प्रयोग का तात्पर्य हुआ की जीवन में न्यूनतम संसाधनों के साथ आपको धैर्यपूर्वक उस समस्या की ग्रंथि को खोलना होता है …..सामने खड़े परिजन आपका उपहास करते है जो इस बात का द्योतक हैं की आपके बन्धु बांधव भी आपका साथ न देकर आपके मार्ग को और दुष्कर कर सकते हैं ….आपको भावनाओं पर भी नियंत्रण रखना सिखाती है ये प्रथा ….जब व्यक्ति समस्याग्रस्त होता है तो वह बन्धु बांधव मुखापेक्षी होता ही है ..ऐसे में उनका सहायता से इनकार और परोक्ष रूप से समस्या वर्धन आपके संयम की परीक्षा है …जब वर उन गांठो को खोलकर धागा फेंकता है तो अनायास ही वधु का चेहरा चमक उठता है संभवतः उसकी आँखों के सामने उसके जीवन संगी की यह पहली विजय होती ह जिसका स्वागत वह अपनी स्मित मुस्कान से करती है और उसी बल का आधार लेकर वह भी गांठे खोलने में लग जाती है …..
ऐसी प्रतिक्षण सीख देने वाली जीवन की छोटी घटनाओं को हम सभी जब भी गंभीरता से लेंगे वे हमें जीवन का एक नया आयाम ही देंगी ….आइये किसी नए आयाम की तलाश जीवन में करें ..

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