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उद्द्योतिनी लहरा रही
अब हवाओं में नहीं
शोणित को जमा रही
है शिराओं में कहीं
मुट्ठियाँ भिचतीं नहीं
अब जवानों की यहाँ
लूट ले जी भर के दुश्मन
अमन औ आबरू यहाँ
शांत है यौवन यहाँ पर
जाने किस चिर मौन में
दीखते हैं मस्तकों पर
स्वेद कण तो आज भी
था जो यौवन काम पे
आज काम में लीन है
किस तरह उसको दिखाऊं
माँ की छाती चीर कर
दूध कल जो तूने पिया
तुझको पुकारे इस कदर
लाल मेरे होश में आ
छोड़ काम के काम को
कर्म को फिर से पकड़ ले
जीत मेरे संग्राम को
यूँ नशे में मत बिता
ये जिंदगानी हर घडी
सूझता तझको नहीं क्यों
माँ तेरी हा पुकारती
उठ खड़ा हो दूर हो जा
हर नशे को छोड़ चल
एक नशा बस पाल ले अब
लाल न हो माँ का आँचल
अब किसी कोने कहीं
रोक ले हर वार जो
बढ़ रहा है ओर मेरी
जब तुझे पाला था मैंने
खूं दिया था जिस्म का
हाल तेरा ऐसा होगा
मुझको ना था ऐसा गुमां
दीखता तो है युवा तू
यौवन तुझमे है नहीं
जल गया वो तो धुंए में
शेष रह गया क्या अभी
एक पुतला खोखला सा
झुक गया देखो हवा से
झंझावतों से क्या लडेगा
अब तो जग जा आन में
अपनी उठा पेशानियाँ
चूमा था जिनको मैंने
जब थीं बहुत परेशानियाँ
आज भी मै हूँ परेशां
देख कर तेरी कदर
अब तो जग जा
अब तो उठ जा
रो रही मै किस कदर
गा रही अब हर पहर
शोर ना कर ऐ हवा
सो रहा है लाल मेरा
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