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कोको कहूँ मै मैया मोरी
एक चुचुक दूध पियावत
इक दै चमचा डारत जोरी
होंठ न जानी स्वाद कौन
किन संग बंधी है डोरी
कबहुँ रबर कै चुचुक दै
दूध पियावत मुह जोरी
किन मुख कै ओर निहारी
एक मिलै मोहें साँझ सवेरे
एक घाम की ठौरी
एक जावत है एक आवत
नहि जानत हाल है मोरी
काल बरा होइकै जब पूछिब
कौन है मैया मोरी
कै वहि जे साँझ दिखानी
दिन आफिस सिमटानी
कै वहि धाय कहू मैया
जे ठुंसी मुह रबर चुचुका
कै वहि रबर चुचुक है मैया
थामि रही बचपन की डोरी
मात पिता सब रहै हमारै
पुनि अनाथ सा बचपन
मात मोहे किस कारन त्याजा
हिय कै कौनहु कोन न भीजा
मोहि तरस कै मात प्रेम कौ
किन आँचर कै ढकी शरीरा
लाज पियावत कै छन मै
किन अंचरा मै मलिन कीन्ह्यो
मल औ मूत्र निकासन मै
तुम ढक्यो मोहे कड़ी लंगोटी
मल न लगे तुमरे तन मै
मै जानि नाहिं पाया अबहुँक
किन कै मातु कहौ कब तै
किन अनाथ सा रोया कीन्हा
गोद तरसता रह्यो हमेशा
तुम लरिकाई हमरी छीनी
किन अपराध भयो हमसों
जानि लेहु इह आगे पसरी
छिन छिन छुट्यो मोर बचपना
आध अनाथ रह्यो मै तौ
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