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कोटि रक्तिम अक्ष ले

umeshshuklaairo
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कोटि रक्तिम अक्ष ले

लक्ष कंठ पुकारती

धैर्य कब तक धरे

ये सुमंगल भारती

श्वेत धवल जल प्रपात

विधवा की सूनी माँग से

गिर रहे सैकड़ों निर्झर

झरे व्यर्थ में बेकार में

ऊर्जाएं अपनी समेटे

बहते चले संसार में

चाह कर भी कोई कभी

बांध ना पाया इन्हें ये

काल से प्रेरित सदा ही

जोड़ते आकाश धरती

अवनि की ऊर्जाओं को

भू कुक्षि में जो रोपते

उन सैकड़ों निर्झर की

पीड़ा ये सदा ही बोलते

मत व्यर्थ हो ऊर्जा कोई

जो मानवों में है भरी

भारती के लाल भारी

हैं सदा सब पर पड़े

अब पड़े भ्रमजाल देखो

चैतन्य भीअब सुप्त है

काल आ निकट रहा

जागने का वक़्त है

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