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तेरे मेरे दरम्याँ

umeshshuklaairo
umeshshuklaairo
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गुज़र गया वो जो लम्हा चुप

तेरे मेरे दरम्याँ बात उसकी

अब क्यूँ करे आके मेरे दायरे

जुस्तजू जिसकी हमेशा दिल

लिए बैठा रहा ख्वाहिशे दिल

हमेशा कब हो रही मुकम्मल

ज़ज्बात की आंधी में दौड़ा जो

जुनूं अब कहाँ भीड़ सी दिखती

हमेशा गिर्द तेरे ही सदा चाहतों

का मजमा लगा अब तो करता

रात दिन भूले से जो याद आये

संग गुज़ारे रूमानियत चार दिन

हाथ थामा मेरा जिस रोज तूने

ढूंढता हूँ वो अंगुलियाँ छप रही

दिल पर मेरे था कौन सा कोना

जो बाकी बच रहा हो अक्स से

तेरा ही जलवा जहा तक अर्श ले

तू मेरी यादो का साया तू ही मेरी

हमकदम दर्द करता हूँ बयां मैं

चीर के तेरा खिलौना दिल मेरा

दर्द तो निकला नहीं बस आरजू

थी रह रही जो छोड़ना चाहे नहीं

इक मुकम्मल रात का साया कहीं

फिर से ढूँढा मिल जाये तू जो

था वजू तुझसे मिलता जुलता

पर दिखती नहीं थी तू कहीं भी

अब तो सुन ले अब तो रुक जा

प्यार भूले से था तुझको अगर

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