- 231 Posts
- 54 Comments
गुज़र गया वो जो लम्हा चुप
तेरे मेरे दरम्याँ बात उसकी
अब क्यूँ करे आके मेरे दायरे
जुस्तजू जिसकी हमेशा दिल
लिए बैठा रहा ख्वाहिशे दिल
हमेशा कब हो रही मुकम्मल
ज़ज्बात की आंधी में दौड़ा जो
जुनूं अब कहाँ भीड़ सी दिखती
हमेशा गिर्द तेरे ही सदा चाहतों
का मजमा लगा अब तो करता
रात दिन भूले से जो याद आये
संग गुज़ारे रूमानियत चार दिन
हाथ थामा मेरा जिस रोज तूने
ढूंढता हूँ वो अंगुलियाँ छप रही
दिल पर मेरे था कौन सा कोना
जो बाकी बच रहा हो अक्स से
तेरा ही जलवा जहा तक अर्श ले
तू मेरी यादो का साया तू ही मेरी
हमकदम दर्द करता हूँ बयां मैं
चीर के तेरा खिलौना दिल मेरा
दर्द तो निकला नहीं बस आरजू
थी रह रही जो छोड़ना चाहे नहीं
इक मुकम्मल रात का साया कहीं
फिर से ढूँढा मिल जाये तू जो
था वजू तुझसे मिलता जुलता
पर दिखती नहीं थी तू कहीं भी
अब तो सुन ले अब तो रुक जा
प्यार भूले से था तुझको अगर
Read Comments