Menu
blogid : 11232 postid : 575575

आँखों की मिट्टी

umeshshuklaairo
umeshshuklaairo
  • 231 Posts
  • 54 Comments

आँखों में जो बदली थी
कल कस कर बरसी थी
बहुत दिनों का सूखापन
मिटा चली वो पगली थी

बहा ले गयी जज्बातों को
उन अरमानों के सैलाबों को
थे मचल रहे दिल के भीतर
छीन रहे हरदम मुस्कानों को

मेरा मन भी कुछ ऐसा पिघला
कमज़ोर बहुत तेरे आगे निकला
पत्थर सा जिसको मन रहा था मैं
मोम का छोटा इक टुकड़ा निकला

अब मेरी बदली उमड़ चली थी
आँखों की मिटटी भीग चुकी थी
मन सोंधा सा महक रहा था
सूखे भावों पर इतना बरसी थी

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply