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जीवन सूख्यो जाय

umeshshuklaairo
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मन मोरे अन्दर पीर बसत है

बाहर मुख मुस्काए

सब जन को यहु भरम देत है

जीवन उत्तम जाए

दिवस होत ही जाग जात है

अंखियन जो पतियाय

दिन भर तो श्रम ताप सहत है

क्षुधा अगिन बुझि पाय

जीवन हर पल कटत जात है

मन संतोष नहिं पाय

मेरो तेरो सब करत फिरत है

धुन भीतर की सुनो न जाय

सुनि भीतर की धुनी ये मनवा

भीतर ही धुधुआय

कैसे कहूँ पीर मोरे दिल जो

करूँ कौन उपाय

बहुत भयो यहु झूठो जीवन

अब तो रहो नहिं जाय

अगिन लालसा मोहे फूँकत है

दाह सहो नहिं जाय

मोहें लाग्यो थो कम होवत है

जस समझ बढ़त जो जाय

पुन ताप तुम्हरो घट्यो नहीं

जीवन सूख्यो जाय

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