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नारी मैं तुझमें क्या देखूं
यौवन की अपनी लिप्सा
या
तेरा ममतामय रूप निहारूं
जन्म मुझे जब दिया गया था
शायद वह नारी ही रही होगी
नहीं जनता सत्य यही मैं
वय मेरी ऐसी रही होगी
शायद तूने ही अपने स्तन से
मुझमें जीवन रस फेंका था
आज उसी स्तन को कैसे
कुत्सित भाव से देखा था
मान लिया सबने वह ही
बनी भोग हित तू संभवतः
भूल न जाने जाते क्यूँ
अपने बचपन की निर्भरता
तेरे कदम बढे उसकी छाती से
निकले रस से जब पुष्ट हुए
जाने किस युग में आ गए सभी
ऐसी तो कभी न बदहाल रही
तूने की तो बंधे थे हाथों पर
रक्षा के वो कुछ सूत्र कभी
मेरी तेरी बहन में बंटता
देखो ये व्यभिचार कहीं
कौन बढेगा कैसे होगा
इनका कुछ परिताप हरण
करने को तैयार सभी जब
बैठे देखो चीर हरण
सन्तति प्राप्ति हेतु बना जो
साधन एक समागम का
सुख इन्द्रिय का बना रखा
तूने अपने ही मन का
कोई नहीं अब कहता है
मेरी बहन पर हाथ पड़ा
देश देखता कब आएगी
बनकर एक दामिनी वो
ममता को कैसे देखे वो
जब दामिनी रूप ही भाता है
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