umeshshuklaairo
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इक मेरे कह देने से की खुश हूँ मैं
वो जानते हैं की फौलाद सा हूँ मैं
चाह कर भी कभी टूटा नहीं शीशा मेरा
जानते थे कांच सा कमजोर हूँ मैं
चल दिए थे जिस घडी तुम
हाथ मेरा छोड़कर दूर तुम
जानते थे अब न आओगे
फिर कभी नजदीक तुम
दूरियां इतनी बना लीं
इत्तेफाकन भी ना मिलीं
नजदीकियां अपने दरमियाँ
जो कभी थीं हमको मिलीं
आज लिखता हूँ दर्द को अपने
हो तुमको मयस्सर तेरे अपने
चाहते हो बेसबब जिनको तुम
रहें दिलों में सदा वो तेरे सपने
मेरा क्या है इक फलसफा था
पढ़ लिया जिसको भूले से कभी
फिर दोहराओगे मुझको यक़ीनन
याद मुद्दत पे जो आएगी कभी
कहानियां बन मैं सजूंगा फिर कहीं
तेरी लफ़्ज़ों की जुबानी फिर वहीँ
चाहूँगा उन किस्सों में इक बार तो
मेरा जिक्र हो जाये फिर से कहीं —
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