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बेच रहे निज मान

umeshshuklaairo
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बैठे सब बाज़ार में बेच रहे निज मान

ऐसे ऐसे बिक चुके जिनका बड़ा था नाम

मैं सदमे से चुप रहा देख के उनकी चाल

कितने लम्बे हाथ से लेते थे वो माल

खीस निपोर कर हँसते थे मिलने पर ब्रीफकेस

सांसें उनकी थम गयी खुलने लेगे जब केस

केस की भागमभाग में भूल गए निज धाम

लालू जैसे चल पड़े कान्हा के जनम धाम

जन्म स्थान के दर्शन को आयेंगे बहु और

देखत ही भर जायेगा ये छोटा सा ठौर

यहाँ ठसक कर रहेंगे सारे मित्र शत्रु इक भाव

जल्दी ही मिट जायेगा वैमनस्य का भाव

साथ साथ खायेंगे मिलकर चावल कंकड़ दार

पतली सी वो दाल रहेगी उसकी संगीदार

कभी साग मिल जायेगा हो जाएगी मौज

ना जाने फिर कब मिले वो चाकर की फ़ौज

मान न बेचा होता मंडी हाथ दलालों के

निकट बने ही रहते सत्ता के गलियारों के

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