umeshshuklaairo
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शायद वो लम्हा मेरे अंदर जी जाये
खनकते वो अलफ़ाज़ कानों में आयें
आँखों में फिर शरारत चमक जाए
उसी घास के मैदान पर लेटा जाए
वो उन दिनों के बोर लगने वाले लेक्चर
फिर से सुनने को मिल जाएँ
टीचर का कई मुद्राओं का चेहरा
एक बार फिर दिख जाये
भीड़ में भी तलाशा था मैनें
तन्हाइयों में खोज था तुमको
आओ मिल कर फिर से बैठें
क्लास कि पिछली बेंच पर
और टीचर से छुप कर फुसफुसाये
नहीं जनता के आज तुम कहाँ हो
शायद मेरे ये अल्फाज़ तुम तक पहुँच जाएँ
आ जाओ फिर से वही पुराना समां बनायें
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