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आँख मिचोली बचपन की

umeshshuklaairo
umeshshuklaairo
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तुम आँख मिचोली बचपन की
अब भी वैसे ही खेल रहे हो
कुछ दो चार घडी तो रुकता
इतनी जल्दी क्यूँ छोड़ रहे हो

तेरी कोमल हथेलियों की
छाप है अब तक आँखों पर
कोमल नैना अब ढूंढ रहे
बचपन के हर उस क्षण को

तू भागमभाग मचाती छुप जाती
मैं हर कोने कोशिश करता
तुझको पाने की पुरजोर सदा
जारी कोशिश वो आज भी है

तू खो गयी जहांदारी में
बचपन अपना भूल चली
मेरे संग खेली यादों को
ले अपने तू साथ चली

आज भी याद हमेशा है
पीछे से आँख मूँदना तेरा
हंसकर कर पूछना पहचानो
वो भोलापन ही था तेरा

अक्सर ढूँढता हूँ तुझको
बंद आँख खोलने के बाद
मिल जाये तू जल्दी मुझको
दिल करता हरदम फरियाद

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