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तुम सुनार की ठक ठक हो

umeshshuklaairo
umeshshuklaairo
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जो जूझ रहे हैं सीमाओं पर
कटवाते अपना शीश रहे
बलिदान व्यर्थ न हो उनका
स्मरण तुम्हे ये सदा रहे

उसने काटे थे शीश हमारे
छाती से लहू हम ले लेंगे
उनके रक्त जलों से हम
केश द्रोपदियों के धुल लेंगे

तुम सुनार की ठक ठक हो
हम लोहार का घन देंगे
हमने जो कभी प्रतिकार किया
अस्तित्व तेरा मिटा देंगे

तू और गरज़ ले कुछ दिन तक
अपनी मिमियाती आवाज़ों में
सिंह गर्जना सुन कर निश्चित
पेशाब करेगा पायजामों में

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